यह अक्सर कहा जाता है कि प्रकृति अपने डिजाइनों को बुनने के लिए सबसे लंबे धागे का उपयोग करती है ताकि उसके धागों का प्रत्येक छोटा हिस्सा पूरे वस्त्र के संगठन में समां सके।
बुनाई के साथ मेरा प्रेम संबंध साल 1978 में शुरू हुआ था। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक छोटे से दुकान से जूते बेचने से कि थी जो असल में मेरे पिता जी कि दुकान थी। लेकिन मुझे थोड़े ही समय में यह समझ आने लगा कि वहां मेरे आगे बढ़ने के आसार बहुत कम थे।
बाद में मुझे एक सरकारी बैंक से नौकरी की पेशकश भी आयी थी, लेकिन मैंने उस नौकरी को अस्वीकार कर दिया था क्योंकि मैं अपना खुद का कुछ मक़ाम बनाना चाहता था, जहां मैं सच में आनंद ले सकता था। और यहां से मैं बुनाई की कला के लिए तैयार था।
अपने व्यापार की शुरुआत करने के लिए मैंने अपने पिता से 5000 / रुपये उधार लिए थे। जिससे मैंने करघा (लूम) और दिन प्रतिदिन के काम लिए, बुनकरों के घरों तक जाने के लिए एक पुरानी साइकिल खरीदी। ये शुरुआत चुनौतियों से भरी थी लेकिन इसमें संतुष्टि थी।
मैंने महसूस किया कि यह व्यवसाय मेरे लिए सबसे उपयुक्त है क्योंकि मैं इसमें यात्रा कर सकता था। गांवों में जाकर बुनकरों के साथ बातचीत कर सकता था। इस क्षेत्र को विरासत शिल्पों के संरक्षण के लिए जाना जाता था, जिसमे बुनाई कि ये कला भी सम्मिलित थी।
9 बुनकरों की निपुणता में, स्थापित पहले करघे पर बुन रहे गलीचे को देखना आनंद था। उनकी उंगलियां मानो, उस गलीचे पर किसी उड़ते हुए चिड़िया के पंख के सामान थी जिसे देखने का सुख मेरे लिए जहन में आज भी मौजूद है। उनके काम का जादू मंत्रमुग्ध करने वाला था।
आज के दौर में जब उत्पादों को लोग २-४ दिन के इस्तेमाल के बाद लोग फेंक देते है। वहीं हस्तनिर्मित उत्पाद के लिए लोगो की भावना गहरी है जो प्रशंसा और आभार व्यक्त करने का कारक है।
बदलते दौर के साथ अधिकांश शिल्प और कला ख़त्म होने कगार पर हैं। ऐसे में जब हस्तनिर्मित वस्तुओं को पसंद करने वाले लोग एक साथ मिलते हैं, तो एक अलग तीव्रता, ऊर्जा और जुनून जागृत होता है, जो अधिकांश जगहों पर दिखाई नहीं देता।
एक 14/14 क्वालिटी के हस्तनिर्मित गलीचे की बुनाई में तीन बुनकरों को एक सप्ताह में 6 दिन, प्रतिदिन लगभग 10 घंटे, और एक वर्ष का समय लगता है।
यह आपके फर्श पर बिछा हुआ किसी के जीवन के समय और मेहनत का एक टुकड़ा है, उनके दिल और आत्मा से जुड़े एक वस्तु का टुकड़ा है और यदि हम ध्यान दें तो यह भी कि वे गलीचा बुनाई से पूर्व होने वाली प्रक्रिया जैसे-ऊन की कतरनी, ऊन की रंगाई, ऊन की कताई इत्यादि का भी टुकड़ा है।
प्रेम की नींव पर निर्मित जयपुर रग्स के सपने को कड़ी मेहनत, प्रयास और समर्पण ने संभव बनाया है।