समानुभूति जैसा की शब्द में ही अर्थ हैं, जिसे दूसरे व्यक्ति की भावनाओं को समझने और साझा करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया गया है। अक्सर, यह शब्द सहानुभूति के साथ भ्रमित होता है, जिसका अर्थ है किसी अन्य व्यक्ति के लिए खेद महसूस करना जब वे कठिन समय से गुजर रहा हो।
जिस तरह से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को देखता है, फिर उसी प्रकार पेश आता है। उसकी इस प्रक्रिया को सहानुभूति के रूप में देखा जा सकता है।
वास्तव में, एक सहानुभूति पूर्ण व्यक्ति बस दया महसूस करेगा यह महसूस करने के बजाय कि कोई अन्य व्यक्ति किस स्थिति से गुजर रहा है और वह कैसे आगे बढ़ेगा। सहानुभूति की परिस्थिति में किसी भी प्रकार के वास्तविक संबंध का बनना असंभव सा है।
वहीं, समानुभूति सिर्फ शब्द मात्र नहीं है ये एक व्यवहार है। और जब हम इस व्यापार की दुनिया में, इस व्यवहार को सम्मिलित करते हैं, तो समानुभूति होने का मतलब असफलता और सफलता के बीच के अंतर का ज्ञात होना होता है। एक अच्छा नेता वो है जो वास्तव में यह महसूस करता है की उनके कर्मचारियों और ग्राहकों की जरूरत और इक्षा क्या है।
जो नेता या मालिक सिर्फ फायदे और नुकसान की रेखा पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वे दूसरों की परवाह नहीं करेंगे क्योंकि उनके पास समानुभूति की दृष्टि नहीं है। वे किसी भी कीमत पर सफलता चाहते हैं। जो,आ सकती है लेकिन टिक नहीं सकती। खासकर आज के दौर में जब लोग पूर्ण रूप से अवगत हैं कंपनियों के साथ रुख करने को लेकर।
अक्सर मालिक शुरुआती दौर में अपने कर्मचारियों को लेकर बहुत सजग रहते हैं, कर्मचारियों और ग्राहकों दोनों के संपर्क में रहते हैं। लेकिन जैसे-जैसे कंपनी तरक्की की ओर बढ़ती है और साथ-साथ मालिक की भी ख्याति बढ़ती है वहां से समानुभूति दरकिनार होने लगती है।
सुखविंदर ओभी, जो एक न्यूरोसाइंटिस्ट हैं उनके अध्ययन से यह पाया गया कि जिन लोगों ने लंबे समय तक सत्ता संभाली है, उनके मस्तिष्क के स्कैन डेटा बताते हैं कि उनकी समानुभूति के व्यवहार में गिरावट प्रदर्शित हुआ है।
जब सफलता के साथ-साथ दिन-प्रतिदिन का काम बढ़ता है, तो उन संबंधों को बनाये रखने के लिए समय निकालना कठिन हो जाता है जिनके साथ हमने शुरुआत की थी। यह कार्य संतुलन का हकदार है, जिसे नेताओं/मालिकों को हमेशा याद रखना चाहिए। जहां से शुरुआत हुई और जहाँ पर है दोनों ही चरण को साथ लेकर चलना जरूरी है।
निजी तौर पर अगर मैं अपनी बात करूँ तो, मैंने पाया है की इस मानसिकता को बनाए रखना कई बार कठिन हो जाता है। लेकिन ऐसी परिस्थिति में मैं अपने पुराने शुरुवाती दिनों को याद करता हूँ जब मैं मेरे नौ बुनकरों से जुड़ा था, जो मेरे साथ ग्रामीण कारीगरों के शिल्प को व्यापक दुनिया में लाने के लिए दृढ़निश्चयी थे ।
आज भी मैं जुनून से भरा महसूस करता हूँ उस समय के बारे में सोच कर। मुझे याद है हमारा उत्साह और आशावाद से भरा वो समय।
हम अक्सर उन व्यक्तिगत संबंधो के लिए बहुत व्यस्त होने के बहाने का उपयोग करते हैं जिसे हमने कभी पूरी शिद्दत से बनाया था। व्यस्तता और ऊंचाइयों की ओर बढ़ती हुई इस जिंदगी में अगर हम अपने उन संबंधो को बनाये रखने में हार जाते हैं, तो हम कहीं न कहीं अपने अंदर कि मानवता खो देते हैं।
यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने समानुभूति के स्तर को ऊँचा रखें ताकि हम लोगों की सेवा करते रहें। खास तौर पर अपने कर्मचारी और ग्राहक दोनों के लिए जो किसी भी संगठन की रीढ़ हैं, आधार हैं।