यात्रा से परिचय…

‘कालीन उद्योग के गांधी’ के रूप में विख्यात, नंद किशोर चौधरी, एक सामाजिक उद्यमी, जयपुर रग्स कंपनी के संस्थापक हैं, जो भारत में हस्तनिर्मित कालीनों के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक हैं। 

ये सफ़र, 1978 में सिर्फ दो करघों (लूम) और नौ कारीगरों के साथ शुरू हुआ।  इस यात्रा ने आज चार दशक बाद जयपुर रग्स को एक वैश्विक सामाजिक उद्यम बना दिया है। जिसमे  40,000 कारीगरों को स्थायी आजीविका प्रदान करते हुए,  60 से अधिक देशों में निर्यात किया जाता है। यहां भारत के पांच राज्यों के 600 गांव शामिल हैं और जिनमे 80% महिलाएं हैं। 

चार दशक जिनमे अनगिनत कहानियां, एक अदम्य भावना, प्यार, करुणा और दृढ़ता से भरी हुई यात्रा। 

दो प्लेट और नेक उद्देश्य

 किसी ने सही ही कहा है कि हर सफल आदमी के पीछे एक दृढ़ निश्चयी महिला होती है और ऐसा ही कुछ किस्सा है नंद किशोर जी का जिनकी जीवन साथी, सुलोचना चौधरी उनकी यात्रा में उनकी रीढ़ बन कर रहीं। 

साहस, शक्ति और दृढ़ता की इस खूबसूरत कहानी से जरूर वाक़िफ़ हों क्योंकि यह हमें उस समय में ले जाती है जब उनके पास गुजरात में बर्तन के नाम पर सिर्फ 2 थाली हुआ करते थे और इस कहानी के पीछे का सबक ही है जो आज जयपुर रग्स के मूल्यों को संचालित करता है।

परिवार से परिचय 

‘ मेरे परिवार के समान मेरा व्यवसाय मेरा जीवन है। मुझे दोनों में कोई अंतर नहीं दिखता क्योंकि हमारे परिवार और संगठन के बीच गहरा संबंध है। हमारा संगठन हमारे कारीगरों के रूप में मेरे परिवार का एक विस्तार मात्र है।’

आशा चौधरी
2001 से एमोरी यूनिवर्सिटी, अटलांटा, यूएसए से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक किया और वर्तमान में जयपुर लिविंग अटलांटा, यूएसए में मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) के रूप में 2001 से काम कर रहीं हैं।
अर्चना चौधरी
अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी से टेक्सटाइल केमिस्ट्री में साइंस ग्रेजुएट हैं और 2003 से जयपुर लिविंग में विभिन्न भूमिकाओं में काम कर रही हैं। वर्तमान में 2017 से जयपुर लिविंग अटलांटा, यूएसए में मुख्य तकनीकी अधिकारी (सीओओ) के रूप में काम कर रही हैं।
कविता चौधरी
स्कूल ऑफ आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो, यूएसए से टेक्सटाइल डिजाइनिंग में ग्रेजुएट हैं और 2006 से जयपुर रग्स कंपनी प्रा लिमिटेड, जयपुर, राजस्थान में डिज़ाइन निदेशक/डायरेक्टर हैं।
योगेश चौधरी
बोस्टन कॉलेज, अमेरिका से प्रबंधन में दो साल की पढ़ाई कर स्नातक किया और 2006 के बाद से जयपुर रग्स कंपनी प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक/डायरेक्टर के रूप में पदभार संभाला हैं।
नितेश चौधरी
सबसे छोटे बेटे, बोस्टन कॉलेज, बोस्टन, यूएसए से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक हैं। वर्तमान में, वह नवाचार, आपूर्ति श्रृंखला और प्रौद्योगिकी के डायरेक्टर हैं।

मेरे जीवन के कठिन चट्टानों का विश्वविद्यालय 

‘मैं अपनी जीवन यात्रा को अपने जीवन के कठिन चट्टानों का विश्वविद्यालय के रूप में पुकारना पसंद करता हूं क्योंकि इस यात्रा से मेरा परिचय मेरे कॉलेज के बाद हुआ, जो मेरे जीवन की वास्तविक शिक्षा है।’

–  नंद किशोर चौधरी

1953 में चूरू, राजस्थान में एक पारंपरिक मारवाड़ी परिवार में जन्म हुआ।

माता-पिता: भानी राम चौधरी और सरस्वती देवी

हाई स्कूल: गवर्नमेंट बागला सीनियर सेकेंडरी स्कूल, 1970

कॉलेज: गवर्नमेंट कॉलेज लोहिया, चूरू, राजस्थान

नन्द किशोर ने कॉलेज के दौरान अपने पिता के जूता व्यवसाय, ‘भारत बूट हाउस’ में काम शुरू कर दिया। लेकिन कॉलेज के कुछ समय बाद ही, उन्होंने अपनी आजीविका का पीछा करना छोड़ दिया और बैंक में कैशियर के रूप में काम करने के लिए लगी नौकरी को ठुकरा दिया ।

इस दौरान, वह एक ब्रिटिश डिज़ाइनर और शोधकर्ता आईले कूपर से मिले, जो शेखावाटी वॉल पेंटिंग का अध्ययन करने के लिए राजस्थान में आए थे। नंद और आईले की दोस्ती हुई और नन्द के जीवन में आईले वो पहले व्यक्ति बने जिन्होंने उनके नए जीवन की ओर कदम रखने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया।

शहर में घूमना और ऐतिहासिक इमारतों को देखना इसमें कुछ ऐसा नहीं था जिसका नंद आनंद लेते थे, लेकिन आईले इसके ही शौकीन थे। दूसरी ओर, नंद को कालीन का काम पसंद आया और ये कुछ ऐसा था जो आईले को पसंद नहीं था।

लेकिन फिर भी दोनों एक दूसरे का साथ देते थे।

अपने युवा काल में नन्द काफी गंभीर और सीधे प्रवृति के बच्चे थे। जो एक अच्छे पाठक और प्रकृति प्रेमी थे। उन्होंने टैगोर और गांधी के कार्यों, रामायण और भगवद गीता के आध्यात्मिक ग्रंथों का भी अध्ययन किया था। उन्होंने अपनी विरासत की खोज की, अपने मूल्यों को पहचाना और अपने जीवन के उद्देश्य की खोज करते हुए अपनी यात्रा का आरंभ किया।

नंद किशोर सुलोचना चौधरी के साथ विवाह के बंधन में बंधे। 

wedding photo

नंद हमेशा एक ऐसा व्यवसाय बनाना चाहते थे जिससे लोगों को बिना परेशानी दिए  पालक और पोषण हो सके।

कॉलेज के दौरान, उनके प्रोफेसर ने एक बार व्यवसाय के उद्देश्य के बारे में पूछा। एक के बाद एक, छात्रों ने अपने दृष्टिकोण की पेशकश करने के लिए अपने हाथ उठाए। जब नंद ने बोलने के लिए अपना हाथ उठाया, तो कहा, ‘व्यापार प्यार के बगल में है यह एक सभ्यता का निर्माता और संरक्षक है।’

इसके बाद उनके शिक्षक ने कक्षा में सबके सामने कहा की, “यह युवा व्यापार के दृष्टिकोण के साथ एक सफल व्यवसाय उद्योग बनेगा।”

नंद ने अपने पिता से  5000 रुपये उधार के रूप में लिए जिससे एक साइकिल, कुछ कच्चा माल खरीदा और अपने गांव चूरू में नौ कारीगरों के लिए दो करघे(लूम) स्थापित किए। अब बारी थी बुनाई की कला को सिखने की फिर बेनेरस के एक अनुभवी कारीगर को बुलाया गया जिससे  नंद ने अपने अन्य कारीगरों के साथ कला सीखी। उन्होंने दिन-रात काम किया और यहां तक ​​कि वो अपना खाना पीना सब लूम के पास ही करते थे। पहला कालीन जोड़े में बना जो  6 × 4 वर्ग फुट का था। जिसे उस समय ‘भारत कालीन उद्यम’ के नाम से निर्यात किया गया ।

अगले तीन वर्षों में, रतनगढ़, सुजानगढ़, लक्ष्मणगढ़ और जोधपुर के क्षेत्रों में दस अतिरिक्त करघे (लूम) जोड़े गए।

मीडिया में पहला उल्लेख आईले कूपर के द्वारा हुआ। इनसाइड-आउटसाइड नामक एक प्रकाशन में नंद किशोर के बारे में  ”मोर देन रिवाइवल” के नाम से एक शीर्षक प्रकाशित हुआ।   

सीधा निर्यात: ठेकेदारों के बाद, यह बिचौलियों को खत्म करने और बुनकरों को सीधे वैश्विक बाजारों से जोड़ने का अगला कदम था।

नंद का विश्वास है की सबके साथ गरिमा, सहानुभूति, सम्मान और प्यार के व्यवहार ने उनके सभी फैसलों को निर्देशित किया है उनका सामना करना सिखाया है । उस समय में जब उन्होंने  सबसे चुनौतीपूर्ण कार्यों में से एक  बिचौलियों को दूर करने का काम किया है । 

आदिवासी कारीगरों से जुड़ने के लिए नंद गुजरात चले गए, और समय के साथ यह स्थान कंपनी के सबसे मजबूत नेटवर्क के एक रूप में उभरा।

उन दिनों, आदिवासियों को अछूत माना जाता था। लेकिन वह उनके साथ ही रहते थे। उन लोगों के साथ-साथ उनकी जीवन शैली को समझते थे।

कुछ वर्षों में अपनापन इतना बढ़ गया की उस समुदाय के लोगो ने सम्मान में नंद को  ‘भाईसाहब’ का नाम दिया और यहां से इस  शब्द की शुरुवात नाम के रूप में हुई, जिसका अर्थ है बड़े भाई। नंद  ने निर्यात शुरू करने और बिचौलियों को कम करने के लिए वलसाड नामक जगह पर एक लघु उद्योग स्थापित किया। नंद बताते हैं की ”एक बार तो ऐसा हुआ की एक ठेकेदार हाथ में बंदूक लेकर मेरे पास आया, मुझसे अपना काम रोकने के लिए कहा। और तब मुझे समझ आया, कि मैं कुछ सही कर रहा था। ”

उसी दौरान, नंद को अपने जीवन में तीन बेटियों और दो बेटों के होने का आशीर्वाद मिला ।

भारत के ग्रामीण इलाकों में कारीगरों के बढ़ते समूह को देखते हुए, भारत सरकार ने जयपुर रग्स को क्षेत्रों की निगरानी और कनेक्ट करने के लिए वॉकी-टॉकी का उपयोग करने का दुर्लभ विशेषाधिकार प्रदान किया।

नंद के लिए, गुजरात में व्यतीत किया हुआ समय सीखने की महान अवधि थी। बेहतरीन गुणवत्ता प्रदान करने के साथ-साथ, दो दुनियाओं के बीच के अंतराल को भी भर रहे थे नंद। जहां  ग्रामीण और बाकी दुनिया को एक दूसरे से जोड़ रहे थे।

नंद ने राज्य भर से 6,000 से अधिक बुनकरों को जोड़ा और गुजरात में आदिवासी समुदाय के लिए पहली बार एक उत्सव रखा गया जिसमे पुरस्कार और बोनस  वितरित किया गया।

अपने 13 साल गुजरात में बिताने के बाद, नंद वापस जयपुर आये और यहां से उन्होंने अपने व्यवसाय का नाम जयपुर कार्पेट्स रखा। उत्तरी अमेरिका में, जयपुर रग्स के वितरण को आसान बनाने के लिए, जयपुर लिविंग को अमेरिका में शुरू किया गया।

नंद  की बड़ी बेटी, आशा ने जयपुर रग्स इन के सीईओ के रूप में व्यवसाय में अपनी शुरुवात कि, वहीँ नंद ने ग्रामीण भारत के कारीगरों पर अपना ध्यान केंद्रित रखा।

नंद  ने इस दौरान बहुत संघर्ष किया जब वह पेशेवरों और वैश्विक व्यापार की प्रथाओं का सामना कर रहे थे। यह नंद के लिए एक नई दुनिया थी।

जो ‘आत्म-खोज’ की एक प्रक्रिया थी। उन्होंने कहा ‘मुझे अब वो सब सही करना है जो गलत हो गया’।

जयपुर रग्स के कारीगरों के नेटवर्क का आंकड़ा 10,000 के पार पहुंच गया और वर्ष भर में, यह अद्वितीय कारीगर संगठन की ताकत बन गए।

नंद की दूसरी बेटी अर्चना चौधरी ने क्वालिटी एश्योरेंस के डायरेक्टर के रूप में जयपुर लिविंग में शामिल हुईं।

नंद  ने राजस्थान पब्लिक ट्रस्ट के तहत जयपुर रग्स फाउंडेशन की स्थापना की, ताकि कारीगरों के नेटवर्क को सहभागिता, विकास और निरंतरता की और ले जाया जा सके। 

पहले दिन से ही, नंद का विज़न  स्थायी और निरंतर चलने वाले ऐसे उद्यम के लिए रहा है जो ग्रामीण समाज का समाधान हो।

कारीगरों का नेटवर्क बढ़कर 40,000 हो गया। (दूसरी तस्वीर)

संगठन ने अपना पहला  डिज़ाइन पुरस्कार, ”अमेरिका मैगनिफिसेंट डिज़ाइन अवार्ड” प्राप्त किया।

नंद के छोटे बेटे योगेश  सेल्स और मार्केटिंग और बेटी कविता डिज़ाइन के प्रमुख के रूप में व्यवसाय में शामिल हुए।

जयपुर कालीन का नाम बदला गया और उसे जयपुर रग्स प्राइवेट लिमिटेड कर दिया गया। 

परिवर्तन का साल, जिसमे अपने कुशल कारीगरों की एक अद्भुत सेना की मदद से  डिजाइन में अद्वितीय गुणवत्ता, नवीनतम और नवाचारों  पर जोर डाला गया और एक नयी शुरुआत की गयी। 

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प्रोडक्शन ने हैंड-नॉटेड कार्पेट्स को 1-मिलियन स्क्वायर फीट तक पहुंचाया।

नंद ने सप्लाई चेन को व्यवस्थित करने के लिए कंपनी भर में डिजिटलाइजेशन और एंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग (ERP) लागू किया।

नंद से संपर्क किया ग्लोबल प्रोफेसर ऑफ मैनेजमेंट, डॉ. सी के प्रहलाद ने। प्रहलाद को जयपुर रग्स के वर्टिकल इंटीग्रेशन मॉडल पर केस स्टडी करना था। 

सी.के प्रहलाद द्वारा ‘फॉर्च्यून एट द बॉटम ऑफ़ द पिरामिड’ के प्रकाशन में जयपुर रग्स को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लाया गया।

उसी समय, नंद ने पेशेवरों और कारीगरों के बीच सामंजस्य लाने के लिए  ‘हायर स्कूल ऑफ अनलर्निंग ’की भी स्थापना की। 

‘हमने व्यावसायिक प्रक्रिया की गहरी समझ को विकसित करने के लिए पेशेवर लोगों को विभिन्न विभागों में अपने अनुभवी लेकिन अशिक्षित प्रबंधकों के साथ काम करने का अवसर दिया जिससे उनमे व्यापार की गहरी समझ आ सके। मैंने उन्हें बुनियादी बातों को सिखाने की चुनौती भी ली जिसमे वे व्यापार और हमारे जैसे लोगों को प्रबंधित करना सीख सकें, जो उन्होंने स्कूल और कॉलेज में कभी नहीं सीखा। और इस प्रक्रिया में मेरा यह विचार ‘खुद को खोने के माध्यम से खुद को पाना’ उनकी मदद करने के लिए था।’

नंद को यंग, ​​एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर अवार्ड मिला।

नंद की बेटी कविता ने कारीगरों के मूल (अब जिसे मनचाहा कहते हैं) की पहल की एक प्रयोग के रूप जो, जल्द ही एक आंदोलन में परिवर्तित हो गया। पहली बार, ग्रामीण राजस्थान में बुनकरों को अपने स्वयं के डिजाइन को कालीनों पर बनाने का मौका मिला। इसमें प्रत्येक कालीन कारीगरों के व्यक्तित्व, भावनाओं और जीवन की कहानी का प्रतिबिंब बना।

एक लीडरशिप सम्मेलन के दौरान नंद की मुलाकात बैन एंड कंपनी के दस भागीदारों से हुई और वहां से  संस्थापक की मानसिकता को संजोने के यात्रा की शुरुआत हुई। 

नंद ने एच.आर(HR) के विभाग का नाम बदलकर ‘द सर्च फॉर द डिवाइन सोल’ कर दिया।

नंद के सबसे छोटे बेटे, नितेश ने नवाचार और प्रौद्योगिकी के निदेशक के रूप में व्यवसाय में शामिल हुए। 

राज सिसोदिया और माइकल जे जेलब ने अपनी किताब में जयपुर रग्स को स्थान दिया, ‘हीलिंग संगठन’ ने नंद के विज़न को सरलता और जयपुर रग्स  को एक आश्रम बताया।

वर्तमान-समय और इसके पीछे का दृष्टिकोण !

नन्द का विजन हैं वैश्विक स्तर पर हस्तनिर्मित कालीन उद्योग के लिए सबसे अच्छा कारीगर प्रस्ताव बनाना।

 कारीगर और ग्राहकों को सीधे एक दूसरे से सीधे जोड़कर सह-निर्माण का करना। नंद का संबंध कारीगरों के साथ दिन प्रतिदिन मजबूत हुआ है। वह कहते हैं, “मैं इस व्यवसाय का मालिक नहीं हूं, असली मालिक वे लोग हैं जो अपनी कड़ी मेहनत से सुंदर कालीनों का उत्पादन करते हैं और जो दुनिया भर के ग्राहकों द्वारा पसंद किए जाते हैं।”

उनका मिशन बुनकर कला को सीधे घर तक ले जाना है। जिससे उपभोक्ताओं को गाँव का आशीर्वाद और प्यार मिलता रहे। जो बुनकरों को कलाकार बनने की उनकी यात्रा की और अग्रसर करता है।

उनका मानना ​​है कि व्यवसाय स्वयं के खोज की एक प्रक्रिया है, और इस प्रक्रिया से हम सभी चिंताओं, भय और अहंकार को दूर करने में सफल हो सकते हैं जो हमें आगे बढ़ने और सही अनुभवों को  प्राप्त करने से रोकता है। 

कोई भी व्यक्ति न तो उत्तम या बिलकुल सही पैदा ही नहीं हुआ और न ही कभी होगा, लेकिन निरंतर बेहतर बनने का प्रयास जीवन को जीने के लायक बनाता है और यही आपको संतुष्टि की ओर ले जाता है इसलिए खुद को खोने से डरना नहीं चाहिए। वह व्यक्ति जो उलझे हुए मझदार से बाहर निकलता है, वह आपको खुद के अनुभवों से आश्चर्यचकित कर सकता है।